Sunday 2 July 2023

गुरुतत्व का तेजस्वी अनुभव

गुरुतत्व का तेजस्वी अनुभव: डॉ प्रभा अत्रे जी का शिष्यत्व प्राप्त होना बहुत ही बड़ा सौभाग्य है!  मेरा जन्म तथा शुरुवाती शिक्षा सोलापुर में हुई।  प्रभाजी का निवास पूना या मुंबई जैसे शहरो मे था।  लेकिन उनकी गायकी का ऐसा सम्मोहन था की सीखना है तो इन्हीसे ऐसा मैंने छोटी सी उम्र में ही ठान लिया था।  कोई भी पूर्व पहचान न होने के बावजूद मै एक दिन मुंबई आया और हिम्मत जुटा कर उनसे मुलाकात की। मेरी परीक्षा करने के बाद प्रभाजी ने मुझे शिष्य के रूप में स्वीकार किया और इस प्रकार अप्रैल २००३ से उनसे संगीत शिक्षा प्राप्त होने का सिलसिला शुरू हुआ जो आजतक जारी है । उनका गाना प्रेडिक्टेबल नहीं है, उसमे कई सरप्राइजेस आते रहते है।  इस गायकी का फार्मूला नहीं हो सकता, और इसी कारन उनसे  सीखना बेहद मुश्किल है।  प्रभाजी का सतत संगीत के चिंतन में रहना मुझे शिष्य के रूप में बेहद करीब से अनुभव करने मिला। वह जैसे किसी ऋषि की आत्मलीन तपस्या का प्रत्ययकारी दर्शन था।  इस अनुभव का मुझपर बहुत गहरा असर हुआ ।  छोटी छोटी बातो मे भी उनके व्यक्तित्व से विनयशीलता, सच्चाई, निष्कपटता हमेशा महसूस होती रहती थी।

 भारतीय संगीत में महिला गुरु बहुत कम हुए हैं। बहरहाल, हमारे समाज में महिलाओं की स्वतंत्र उपलब्धियों को बहुत देर से पहचाना गया। पुरुषों की तुलना में महिलाएं निचले दर्जे की मानी जाती थी। शायद इसीलिए एक महिला पुरुष शिष्यों की गुरु हो यह बात किसी भी क्षेत्र में स्वीकार नहीं हो सकती थी।  लेकिन फिर भी भीमसेन जोशी केसरबाई से प्रभावित हुए, कुमार गंधर्वजी ने बड़ी भक्ति के साथ अंजनीबाई मालपेकर के अधीन अध्ययन किया, मोगूबाई कुर्डीकर ने कुछ पुरुष शिष्यों को प्रशिक्षित किया, कुछ पुरुष शिष्यों ने  हीराबाईजी से भी सीखा। (सुधीर फडके जैसे महान गायक हीराबाई को अपना गुरु मानते थे), राजाभाऊ कोगजे ने रसूलनबाई से ठुमरी सीखी थी। ऐसे कुछ उदाहरण मिलते हैं !   उनकी बाद की पीढ़ियों में, कई पुरुष शिष्यों ने गंगूबाई हनगल, गिरिजा देवी, किशोरी अमोनकर, प्रभा अत्रे, वीणा सहस्त्रबुद्धे, धोंडूताई कुलकर्णी, माणिक भिडे, अश्विनी भिडे जैसे प्रसिद्ध गायिकाओं से स्वतंत्र रूप से सीखना शुरू किया। इनमें से कई शिष्य पेशेवर कलाकारों के रूप में भी सफल रहें। इसका कारण यह है कि गुरु तत्व और संगीत जैसी कला लिंग, जाति और उम्र के अंतराल से परे होते है।  

लेकिन योग्य शिक्षा पाने के लिए गुरु अवश्य ही अधिकारी और विचारक होना चाहिए। पुरुष गुरुओं से सीखकर पुरुषों की तरह अभिनय तथा मुख भंगिमाएं  करनेवाली, असहज आवाज़ में गानेवाली  कुछ महिला गायिकाएं हम देख सकते है। अच्छे गुरू में पुरुषों और महिलाओं की मुखर श्रेणी के अंतर को समझने के साथ-साथ गायन के स्वर (pitch) में आवश्यकता अनुसार बदलाव करके सिखाने की क्षमता होनी चाहिए । पुरुषों और महिलाओं का खुद को अभिव्यक्त करने का अलग अलग तरीका होता है जिसका  निश्चित रूप से उनकी कला प्रस्तुति पर भी असर होता है। एक महिला की कोमल, मधुर अभिव्यक्ति पुरुष की आवाज में ठोस, मजबूत लग सकती है, भले ही उसकी स्वरावली एक ही हो। उस अभिव्यक्ति पद्धति को कुदरती तौर पर पनपने देना चाहिए। शिष्य में संगीत की सहज अभिव्यक्ति का सुंदर भाव पैदा होना चाहिए। प्रभाजी स्वयं मुख्य रूप से पंडित सुरेशबाबू माने द्वारा प्रशिक्षित है।  उस्ताद बड़े गुलाम अली खान, उस्ताद अमीर खान जैसे समृद्ध मर्दाना आवाज वाले पुरुष गायकों के गायन से वह प्रेरित भी रही। लेकिन फिर भी, उनका अपना गायन मर्दाना नहीं हुआ, या किसी और की नकल नहीं लगा। इस जीवंत उदाहरण से मेरे सामने सुयोग्य आदर्श स्थापित हुआ।

मुझे सिखाते समय प्रभाजी ने सभी जरूरी पहलुओं पर पूरा ध्यान दिया। उन्होंने मुझे आवश्यक खरज साधना, पलटे, उचित उच्चारण, स्पष्ट सुरीली आवाज, सभी सप्तकों में गुंजायमान स्वर तथा एक अच्छा पुरुष स्वर बनने के लिए आवश्यक रियाज की विधि दिखाई। सबसे महत्वपूर्ण बात, उन्होंने मुझे कभी भी अपने महिला स्वर (pitch) में गाने के लिए नहीं कहा, हमेशा मुझे मेरे पुरूष स्वर  (सफ़ेद दो) में ही सिखाया। भले ही उन्हें इसके लिए कितनी तकलीफ़ उठानी पड़े! मेरी शिक्षा के दौरान उन्होंने यह विचार भी स्थापित किया कि पुरुष गायकों को वह बंदिशें गानी चाहिए जो उनके अनुकूल हो। जैसे उनकी स्त्री शिष्याए गायेंगी "जिया मोरा ना लागे बैरी बलमुवा" लेकिन मुझे सिखाते हुए उन्होंने उसमें "जिया मोरा ना लगे बैरी सजनिया" ऐसा बदलाव किया। यह पहली बार है जब किसी ने भारतीय संगीत में ऐसा विचार प्रस्तावित किया है। इससे भारतीय शास्त्रीय संगीत की प्रस्तुति में आमूल-चूल परिवर्तन हो सकता है। अर्थात ऐसा विचार प्रस्तुत करने के लिए भी बड़ी मात्रा में नए संगीत रचनाओंको बनाने की उच्च स्तर की प्रतिभा और रचनात्मकता होने की आवश्यकता है। प्रभा जी ने अपनी बंदिश की पुस्तक में सभी रचनाओं में पुरुष कलाकारों के लिए इस प्रकार से  अलग शब्दों का प्रयोग चयन किया हुआ है। 

मुझे प्रभाजी से उनके घर में रहकर गुरुकुल पद्धति अनुसार सिखने का सुअवसर मिला। इसलिए, दूसरे शिष्यों को वह कैसे सिखाती है यह भी मै करीब से देख सका। और मुझे दुगना फायदा मिलता रहा। उन्हों ने कई शिष्यों को बिना शर्त बड़े ही प्यार से, खुद के घर में रखकर खिला  पिलाकर संगीत की शिक्षा दी। स्नेहमयी और अत्यंत मिलनसार व्यक्तित्ववाली प्रभा जी सिखाते समय बहुत सख्त और कठोर होती हैं। यदि किसी स्वर का लगाव या कण, खटका गलत हो जाए तो शिष्य को कड़ी डांट मिलती है। वह कहती हैं की संगीत के विद्यार्थियों ने किसी भी प्रस्तुति को इतने अच्छे से सुनना चाहिए कि किसी भी गायक ने कितनी सांस ली है वह भी समझ आए। वे बंदिश को जस का तस पेश करने पर जोर देते हैं। सिखाते समय भी उनका गायन इतना परिष्कृत होता है की उसमें एक सुंदर, आनुपातिक मूर्तिकला जैसी सुंदरता महसूस हो। उनके गायन में सुंदरता के साथ एक गहरा अनुशासन भी है। 

प्रभाजी से शिक्षा प्राप्त करने के प्रारंभिक वर्ष मेरे लिए बहुत कठिन रहे। उनके सामने गाना मानो संघर्ष और ठोकरें खाते हुए दौड़ने की शर्त लगी हो। एक तो मेरी शुरुआती संगीत शिक्षा बहुत अलग रूप से हुई थी, उसमें मैं सोलापुर से आया हुआ सिर्फ 16-17 साल का पहली बार पुणे-मुंबई जैसे बड़े शहरों में आया हुआ नवयुवक था। प्रभा जी का उदात्त, देवतुल्य व्यक्तित्व, उनकी वाणी का तेज, इन सब का मुझ पर इतना दबाव बन जाता था की, उनके सामने मैं अपने मुख से एक शब्द भी नहीं निकाल पाता। बहुत कुछ सीखने की इच्छा तो रहती थी , लेकिन आत्मविश्वास की कमी, भय, हिचकिचाहट की मिश्रित भावनाएँ उस दौरान मेरे मन में भरी रहती थीं। लेकिन समय के साथ उनसे सीखने के जुनून ने इन सभी मुश्किलों पर काबू पा लिया। उनका गाना धीरे-धीरे समझ में आता गया। खौफ की जगह शत प्रतिशत समर्पण ने ले ली। मैंने बहुत मन लगाकर घंटों रियाज करना शुरू किया। स्वरों की आकर्षक बुनाई, उनके साथ पिरोए जानेवाले मधुर स्वर कण, मींड का इंद्रधनुष और खटकों का सटीक  प्रयोग,‌ हर सांगीतिक क्रिया के पीछे का कार्यकारण भाव,‌‌ प्रस्तुति का रसीलापन, भव्यता, तथा उसमें छिपे गहरे भाव मेरी अंतरात्मा से संवाद करने लगे।  सरगम और तानों के अद्भुत आकृतिबंध मेरे मन और मस्तिष्क में हमेशा झूमते रहने लगे। प्रभा जी के संगीत और विचारों की विशिष्टता को समझने की क्षमता उभरने लगी और संगीत का एक अलग ही रूप मेरे सामने प्रकट होने लगा।

प्रभाजी ने शुरू में कई दिनों तक यमन राग ही सिखाया। यमन जैसा राग उनकी सौंदर्यात्मक प्रस्तुति में इतना अलग लगता था कि मन भ्रमित हो जाता की क्या यह वही यमन राग है ? जो शुरुआती दौर में मैंने सीखा हुआ था? अ‌त्यंत सुरीला गूंजने वाला गंधार का न्यास, तीव्र मध्यम का तीक्ष्ण अग्र,‌ इन  जैसे स्वरों का विशिष्ट स्थान, कल्पक और प्रशांत आलापी,  गंधार ऋषभ से मींड के रूप में नाद ब्रह्म में विलय होने वाला षडज,‌‌‌‌ पेंचदार तथा बल युक्त गतिमान तान क्रिया,‌‌ लय का हाथ पकड़ कर आने वाली अनोखी सरगम सब कुछ अत्यंत सुंदर।  ‌ प्रभा जी जैसे विस्तृत तथा ठहराव युक्त अलाप शायद ही किसी और कलाकार ने किए होंगे। ‌ उनकी तान संरचना अत्यधिक संरचित, घुमावदार, तेज और अत्यधिक जटिल है। लेकिन खास बात यह है की उसकी मिठास कहीं भी कम नहीं होती! उनकी पूरी प्रस्तुति में ही माधुर्य कहीं  कम नहीं होता यह एक बहुत ही विशेषता है ।‌‌ शास्त्रीय संगीत प्रस्तुत करने वाले कई कलाकार माधुर्य से दूर ही रहते हैं इसीलिए सामान्य श्रोता उस संगीत का आनंद नहीं उठा पाते। प्रभा जी के संगीत में जानकारों के साथ-साथ सामान्य श्रोता भी आनंदित हो उठते हैं। नोटेशन लिखकर या याद रख कर उनका संगीत नहीं गाया जा सकता।  इसलिए उनका संगीत सुनने में जितना सहज मधुर लगता है गाने में वह उतना ही मुश्किल है। स्पष्ट नादमय शब्द उच्चारण, पूरे गाने में भरी हुई आंतरिक लय,‌ राग की चौखट में रहते हुए नयी स्वरा कृतियां ढूंढना,‌‌ आकर्षक रुप से सम पर आना श्रोताओं के लिए यह सब अद्भुत अनुभव होते हैं।‌‌ प्रभा जी से सीखते हुए संगीत का भव्य तथा अत्यंत ऊंचे स्तर का दर्शन मुझे होता रहा। ‌‌‌‌‌‌उन  दिव्य क्षणों से मेरी झोली भरती रही।‌ तालीम के बाद, कभी-कभी मैं उस रात सो भी नहीं पाता था। वह बंदिशें, लय का चक्र, राग में खोजे गए नए सृजनात्मक स्थलों की नक्काशी, सब एक के बाद एक जहन में घूमते रहता था। यह उन संगीत सिद्धांतों का आत्मबोध ही था। आज भी उन रागों और बंदिशों को गाते हुए ऐसा लगता है जैसे ताई सामने बैठकर सिखा रही हो और अनजाने में ही कभी कभी मेरी आंखें भर आती है। 

जब मैंने मुंबई विश्वविद्यालय से संगीत में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की, तो उन्होंने खुशी-खुशी मुझे एक पार्टी देने के लिए कहा था,  मेरी शादी में आशीर्वाद देने के लिए खास तौर पर सोलापुर आई थी। ‌ और जब मुझे कोरोना हो गया‌ था तब मेरे स्वास्थ्य की जानकारी लेने के लिए वह हर दिन अस्पताल में फोन करती थी।  ऐसी कई यादें हैं। उनसे ऐसा प्रेम प्राप्त करना और उस ऋण में रहना शिष्य के रूप में परम सौभाग्य है।

डॉ प्रभा अत्रे जी के मार्गदर्शन के कारण मैं सही दिशा में आगे बढ़ता रहा। मैंने गायकी के कौशल के साथ साथ ही उनकी शोध, चिंतन, शिक्षा और नए संगीत रचना करने की गुणवत्ता को आत्मसात करने का प्रयास किया। गायक के रूप में काम करते हुए मेरा रचनात्मक और लेखन कौशल सहजता के साथ खिल उठा। धीरे-धीरे 250 से 300 बंदिशों का निर्माण हो गया, सुगम संगीत,‌‌गीत ग़ज़ल  के क्षेत्र में कई नवीन रचनाएं जानी मानी म्यूजिक कंपनियों के द्वारा जारी की गई । पुस्तकें प्रकाशित हुई तथा संगीत में डॉक्टरेट भी प्राप्त हुई। यह सब गुरु आशीर्वाद का ही फल है ऐसा मैं मानता हूं। प्रभा जी ने मुझे ना केवल सिखाया बल्कि स्वयं कुछ निर्माण करने के लिए सक्षम बनाया,‌ प्रेरित भी किया। ‌

गुरु चरण लागो मोरे मन पावत सब सुख और ज्ञान

 सतगुरु संगत सबसे भारी जोत जगायें अंतर्यामी ।




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