ब्रह्म हूँ मै तेज हूँ ग्यान हू गुण खान हूँ
बुद्धि हूँ मै साधना प्रग्य चक्षु कामना
कण कण बसे उस ईश का सर्व व्यापी निर्माण हूँ
ब्रह्म हूँ मै ब्रह्म हूँ ।। धृ ।।
ब्रह्म हू जल की तरह ढल जाऊ जिसमे भला
कर दू जगमग हर जगह मै वह दिव्यांश हूँ
ब्रह्म हूँ मै ब्रह्म हूँ ।।१।।
बुद्धी ग्यान ध्यान हूँ, राह अपनी खोज लू ,
नित्य आत्मोत्कर्ष का मै वही राहगार हूँ
ब्रह्म हूँ मै ब्रह्म हूँ ।। २।।
प्रग्या, मेधा, स्मृति बसे, सृजन की धारा बहें,
शोध, बोध खोजता मै आदी और अनंत हूँ
ब्रह्म हूँ मै ब्रह्म हूँ।। ३।।
संग सबका साथी मै, दू लहू और स्वेद मै,
ले चलू जो शिखर तक, मै वही सुधांशू हूँ ,
ब्रह्म हूँ मै ब्रह्म हूँ ।। ४।।
वंचितो को प्रेम दू दुर्बलों को आसरा
चाहे सबका जो भला मै वही सु-मनन हूँ
ब्रह्म हूँ मै ब्रह्म हूँ।। ५।।
आंधियों को मिटाऊ हर कार्य को सम्हालू
ईश माने देश को जो मै वही आर्यांश हूँ
ब्रह्म हूँ मै ब्रह्म हूँ।। ६।।
शांती का है रस्ता मेरा अनुशासन और परंपरा
संस्कृती को सिमेटा मै वही संस्कार हूँ
ब्रह्म हूँ मै ब्रह्म हूँ।। ७।।
तत्व हू अमीट हूूँ ध्येय हूँ आत्मभान हूँ
ध्रुव जैसा अटल निश्चल मै वही विशेष हूँ
ब्रह्म हूँ मै ब्रह्म हूँ।। ८।।
बल है और शौर्य भी विचार और निती भी
पथ दिखाते दिप जैसा मै वह तेजांश हूँ
ब्रह्म हूँ मै ब्रह्म हूँ।। ९।।
वेद और विज्ञान जानू कला, कौशल, प्रतिभा पहचानू
देके विद्या जगत उधरू मै वही 'गुरूपद' भी हूँ
ब्रह्म हूँ मै ब्रह्म हूँ ।।१०।।
सकल मंगल करन चाहू जगत सुंदर करके जाऊ
व्यापू कण कण देह चंदन मै अखिल ब्रह्मांड हूँ
ब्रह्म हूँ मै ब्रह्म हूँ ।।११।।
- डॉ अतिंद्र सरवडीकर