Monday 23 November 2020

फुलोंकी ऋत

फुलोंकी ऋत है ये फुलोंके मेले      
म फुलोंमे सोते है फुलोंमे जगते। 

दुनिया बनी है शोर-ए-गुल का दरिया
हम अपने मे मस्त है धून अपनी गुनगुनाते

वो भवरों की टोली आती है खिलखिलाते, 
हम सबसे है मिलते पर तनहा रह जाते

वह जुगनू के साये पल मे झिलमिलाते, 
जैसे यादों के पन्ने खुलते मिट जाते 

वह फुलोंके वादे वह फुलोंके चर्चे, 
ख्वाबोंकी सिलवट पे फुलों से चेहरे 

- डॉ अतिंद्र सरवडीकर

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